यदि आप एलियंस या एक्स्ट्रा टेरेस्ट्रियल इंटेलिजेंस जैसे विषयों में ख़ास रूचि रखते हैं तो हो सकता है की आपने WOW सिग्नल का नाम कभी सुना हो। जब से हम मनुष्यों ने सोचने समझने की ताकत पाई है तब से हमने अपने आप से ये सवाल पूछना सुरु कर दिया था की आखिर हम इस धरती पर कर क्या रहें हैं। इस सवाल का जवाब हमें आज तक नहीं मिला है और शायद यही कारन है की हम सभी ने इस बात पर विचार जरूर किया है की क्या इस धरती के परे भी कहीं जीवन है और कहीं जीवन है भी तो क्या वो हम इंसानो जैसा सोचने समझने की क़ाबलियत रखता है।
हमारे द्वारा स्पेस में लगाए गए टेलिस्कोप भी आकाश के हर कोने में और अंतरिक्ष की गहराई में यही ढूंढते रहते हैं की कहीं हमारे जैसी दुनिया या लोग अंतरिक्ष के किसी कोने में मौजूद तो नहीं हैं। मनुष्यों ने भी कई मैसेज अंतरिक्ष में इस उम्मीद में भेजें हैं की शायद हो सकता है की कोई इंटेलीजेंट सभ्यता के एलियन लोग हमसे वापस संपर्क करें।
आर्सीबो मैसेज इसी तरह का एक रेडियो मैसेज था जो 1974 में स्पेस में बीम किया गया था। यह मैसेज जब तक किसी तारे के करीब से गुजरेगा तब तक धरती पर पच्चीस हज़ार साल गुजर चुके होंगे, तो इसके किसी सभ्यता तक पहुँचने में और उस से जवाब आने में कितने साल लगेंगे उसका अंदाज़ा आप खुद लगा सकते हैं।
लेकिन यदि ऐसा हो की हमारी तरह हीं किसी एलियन सभ्यता ने कोई सन्देश अंतरिक्ष में इसी उम्मीद में छोड़ी हो की किसी दिन यह जाकर धरती जैसे किसी ग्रह पे मौजूद किसी सभ्यता को मिलेगी। हमारे वैज्ञानिको और एस्ट्रोनॉमर्स को भी यह ख्याल आते रहता है और यही कारण है की उन्होंने धरती पर लगे रेडियो टेलिस्कोप आसमान के हर कोने की तरफ मोड रखे हैं।
लेकिन क्या हमें ऐसा कोई सन्देश मिला है जिसको देखकर हम दावे के साथ कह सकें की ये किसी एलियन या समझदार सभ्यता द्वारा भेजी गयी है। यहीं पर वाओ सिग्नल ऐसे किसी मैसेज के सबसे प्रबल दावेदार के रूप में हमारे सामने आता है।
क्या है ये WOW ! सिग्नल ?
WOW सिग्नल 15 अगस्त, 1977 में अमेरिका के Ohio State यूनिवर्सिटी के ऑब्जर्वेटरी में लगे रेडियो टेलिस्कोप Big Ear द्वारा रिकॉर्ड किया गया था। यदि आप नहीं जानते तो आपको बता दें की रेडियो टेलिस्कोप एक ऑप्टिकल टेलिस्कोप से बिलकुल अलग होता है।
टेलिस्कोप शब्द सुन कर ज्यादातर लोगों के मन में नीचे तस्वीर में दिखाए गए एक ऑप्टिकल टेलिस्कोप का ख्याल आता है जिस से दूर की चीज़ों को देखा जाता है। परन्तु एक रेडियो टेलिस्कोप का आकार और काम दोनों हीं इस टेलिस्कोप से बिलकुल अलग होते हैं।
एक रेडियो टेलिस्कोप असल में एक बड़े आकर का ऐन्टेना होता है जिस से दूर अंतरिक्ष से आने वाले रेडियो सिग्नलों को रिसीव किया जाता है। WOW सिग्नल को रिकॉर्ड करने वाला टेलिस्कोप भी एक रेडियो टेलिस्कोप था जो आकाश से आने वाले रेडियो वेव्स को दिन के 24 घंटे रिकॉर्ड करता रहता था।
इस रेडियो टेलिस्कोप द्वारा रिकॉर्ड किये गए रेडियो सिग्नल्स को ऐनेलाइज़ करने का काम अस्ट्रोनॉमर Jerry R. Ehman का था। Jerry Ehman ने जब बिग ईअर द्वारा रिकॉर्ड किये गए सिग्नल को देखा तब उन्हें बिलकुल भी एहसास नहीं हुआ था की वे क्या देख रहे हैं। वे इस सिग्नल को देख कर दंग रह गए थे और उन्होंने सिग्नल को इसके प्रिंटआउट पर एक लाल कलम से गोला बना कर मार्क भी किया था और उसके बगल में Wow ! लिख दिया था। यही कारण है की यह सिग्नल Wow! सिग्नल के नाम से जाना जाता है। आज आप जो फोटो नीचे देख रहें है उसका ओरिजिनल प्रिंटआउट आज भी Ohio स्टेट यूनिवर्सिटी में रखा हुआ है।
वाओ सिग्नल इसलिए ख़ास था क्योंकि उस से पहले Jerry R. Ehman ने इस तरह का सिग्नल कभी नहीं देखा था। सिग्नल लगभग 72 सेकंड के लिए बिना रुके पूरा रिसीव किया गया था।
हर रेडियो सिग्नल की एक फ्रीक्वेंसी होती है। कुछ फ्रीक्वेंसी वैज्ञानिक रिसर्चर और एस्ट्रोनॉमर्स के लिए रिज़र्व होती है यानि इस फ्रीक्वेंसी का इस्तेमाल अन्य एजेंसियां या लोग नहीं कर सकते। यह सिग्नल 1420 megahertz की फ्रीक्वेंसी पर भेजा गया था जो हाइड्रोजन एटम से नैचुरली निकलती है और केवल वैज्ञानिक और रिसर्चर हीं इसका इस्तेमाल करते हैं। पर यह सिग्नल हाइड्रोजन एटम से कुछ माइक्रोसेकेंड्स के लिए हीं निकलती है जबकि वाओ सिग्नल काफी देर तक रिकॉर्ड किया गया था।
सिग्नल को देखने के बाद कई वैज्ञानिक इसके सोर्स यानि आसमान में यह किस दिशा से आया है उसका पता लगाने में लग गये थे। यह सिग्नल Sagittarius यानि धनु राशि के तारामंडल की तरफ से आया था। यानि सिग्नल का सोर्स या उद्गम अंतरिक्ष के उसी दिशा में था।
Wow ! सिग्नल को लेकर किस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं वैज्ञानिक
इस सिग्नल को पहली बार देखने वाले अस्ट्रोनॉमर Jerry R. Ehman ने इस सिग्नल के आने वाली दिशा में अपने टेलिस्कोप को मोड़ कर इस सिग्नल को फिर से देखने का कई बार प्रयाश किया था पर उन्हें आज तक यह सिग्नल वापस नहीं मिला है।
साथ हीं उनका यह भी कहना है इस सिग्नल को भेजने के लिए 1420 मेगाहर्ट्ज की फ्रीक्वेंसी का इस्तेमाल करना भी इस बात की और संकेत करता है की सिग्नल को भेजने वाली सभ्यता ये जानती है की एक हाइड्रोजन एटम से निकलने वाली रेडिएशन भी इसी फ्रीक्वेंसी पर निकलती है।
लेकिन कई बैज्ञानिक कहते हैं की हो सकता है की किसी ने धरती से यह सिग्नल आसमान की तरफ भेजी हो और यह सिग्नल किसी स्पेस में मौजूद सैटेलाइट या स्पेस कचरे से टकरा कर धरती की तरफ वापस आ गयी हो। लेकिन इस बात की सम्भावना भी काफी काम लगती है क्योंकि सिग्नल जितनी देर के लिए आया था और जिस इंटेंसिटी का था वैसा सिग्नल किसी सैटेलाइट की सतह से रिफ्लेक्ट होने पर नहीं बन सकता है।
कई वैज्ञानिक यह मानते हैं की ये सिग्नल किसी Quasar या किसी घूमते हुए न्यूट्रॉन स्टार से निकला हो सकता है। पर ऐसा सिग्नल कभी किसी तारे से निकला हुआ आज तक डिटेक्ट नहीं हुआ है।
कई वैज्ञानिक इसे किसी कॉमेट के किसी तारे के करीब आ जाने से गर्म होने पर निकला हुआ सिग्नल भी बताते हैं पर इस बात को भी ज्यादातर वैज्ञानिकों ने नकार दिया है क्योंकि धरती के सूरज के आस पास से गुजरने वाले कॉमेट्स में ऐसा कभी नहीं देखा गया है।
तो आज वर्त्तमान में स्थिति यह है की Sagittarius कॉन्स्टेलशन यानि तारामंडल की तरफ कई रेडियो टेलिस्कोप अपने मुँह कर के इसी उम्मीद में बैठे हैं की शायद ऐसा सिग्नल फिर से दिखाई दे जाए पर ऐसा अभी तक नहीं हुआ है। अब सच में सिग्नल किसी एलियन सभ्यता ने भेजा था या इसके आने का कोई और कारण था इस बात का पता एस्ट्रोनॉमर्स आज तक नहीं लगा पाए हैं।