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आपके कंप्यूटर में लगा SSD यानि सॉलिड स्टेट ड्राइव कैसे काम करता है, आइये जानें

आपने यदि हाल फिलहाल में नया कंप्यूटर या लैपटॉप ख़रीदा है तो उसमें लगा स्टोरेज डिवाइस, SSD यानि सॉलिड स्टेट ड्राइव कहलाता है। SSD के चलन में आने से पहले एक कंप्यूटर में डाटा सेव करने के लिए हार्ड डिस्क ड्राइव का इस्तेमाल किया जाता था। हार्ड डिस्क ड्राइव और सॉलिड स्टेट ड्राइव, दोनों ही कंप्यूटर में डाटा सेव करने के लिए लगाए जाते हैं लेकिन इनके, डाटा को सेव करने के तरीके में काफी अंतर होता है।

एक परंपरागत हार्ड डिस्क ड्राइव में डाटा को सेव करने के लिए मैग्नेटिक प्लैटर लगा होता था जो धातु यानि एल्युमीनियम या सिरेमिक से बना डिस्क होता था। जिस पर डाटा सेव करने के लिए मैग्नेटिक कोटिंग का इस्तेमाल किया जाता था। एक हार्ड डिस्क ड्राइव में औसतन ऐसे तीन प्लैटर लगे होते थे। डाटा को हार्ड डिस्क ड्राइव पर सेव करने और फिर पढ़ने के लिए एक रीड/राइट हेड भी होता था, जिसे एक एक्चुएटर या मोटर द्वारा कण्ट्रोल किया जाता था। वहीँ मैग्नेटिक प्लैटर को घूमाने के लिए भी एक हाई आरपीएम मोटर का इस्तेमाल किया जाता था।

एक हार्ड डिस्क ड्राइव में डेटा को लिखने के लिए उसका रीड/राइट हेड डिस्क प्लैटर के एक माइक्रोस्कोपिक हिस्से को मैगनेटाइज़ या डी-मैगनेटाइज़ करता है। जब रीड/राइट हेड डेटा लिखता है तो डिस्क प्लैटर एक पंखे की तरह गोल घूमता रहता है ताकि डाटा को उसके चारों ओर लिखा जा सके। भविष्य में इस डेटा को पढ़ने के लिए रीड/राइट हेड वापस डिस्क के उसी हिस्से पर जाता है और मैगनेटाइज़ड हिस्से को ‘1’ और डी-मैगनेटाइज़ड हिस्से को ‘0’ के रूप में पढ़ता है। एक हार्ड डिस्क ड्राइव में इसी प्रकार से बाइनरी डेटा को सेव और रीड किया जाता है।

एक हार्ड डिस्क ड्राइव के अंदर आपको ये सभी पुर्जे देखने मिलेंगे।

लेकिन एक सॉलिड स्टेट ड्राइव में डेटा को सेव करने के लिए एक बिलकुल अलग और नई तकनीक का प्रयोग किया जाता है, जिस वज़ह से एक सॉलिड स्टेट ड्राइव एक हार्ड डिस्क ड्राइव की तुलना में ज्यादा तेज़ चलता है। इसके अलावा भी एक SSD के कई और फायदे होते हैं। यहाँ हमने एक सॉलिड स्टेट ड्राइव के इन्हीं गुणों और विशेषताओं को विस्तार से समझाया है।

SSD की रीड/राइट स्पीड हाई होती है

एक सॉलिड स्टेट ड्राइव, एक हार्ड डिस्क ड्राइव से भिन्न, डाटा को सेव करने के लिए NAND फ़्लैश गेट्स से बने इंटीग्रेटेड चिप्स का इस्तेमाल करता है। कंप्यूटर टर्मिनोलॉजी में कहें तो एक NAND फ़्लैश गेट एक NOT – AND लॉजिक गेट होता है जिसे शॉर्ट में NAND कहते हैं। इन माइक्रोस्कोपिक NAND फ़्लैश गेट्स को एक SSD में लगे चिप्स के अंदर स्थापित किया जाता है। ऐसे एक चिप में करोड़ों की संख्या में NAND फ़्लैश गेट्स या ट्रांसिस्टर्स लगे होते हैं जो डाटा को सेव करने के लिए हीं बने होते हैं। इन करोड़ों NAND फ़्लैश गेट्स को एक दूसरे के साथ ऐसे लगाया जाता है जैसे एक बहुमंज़िला ईमारत में अलग अलग फ्लोर्स पर स्थित कमरे होते हैं।

डाटा को सेव करने के लिए इन सभी NAND फ़्लैश सेल्स/गेट्स को एक साथ इलेक्ट्रिकल सिग्नल या करंट भेजा जा सकता है। इस विद्युत् ऊर्जा को पाकर एक NAND फ़्लैश गेट चार्ज हो जाता है यानि डेटा को सेव कर लेता है। जब कोई NAND फ़्लैश गेट या सेल एक चार्जड अवस्था में होता है तो उसे एक कंप्यूटर ‘0’ के रूप में पढता है। वहीँ चार्ज की अनुपस्थिति को ‘1’ माना जाता है। इसी प्रकार से एक SSD में बाइनरी डाटा (जो की केवल 0 और 1 से बना होता है) को सेव किया जाता है। 

इन्हीं विशेषताओं के कारन एक SSD में मौजूद सेल्स के एक समूचे समूह को एक साथ सिग्नल भेज कर तेज़ी से चार्ज या डिस्चार्ज किया जा सकता है यानि तेजी से डाटा को सेव या डिलीट किया जा सकता है। वापस उस डाटा को पढ़ने के लिए एक SSD उन NAND सेल्स में मौजूद चार्ज का पता लगाता है। यदि एक सेल में चार्ज मौजूद हुआ तो उसे बाइनरी में ‘0’ माना जाता है और यदि NAND सेल में चार्ज न हो तो उसे ‘1’ पढ़ा जाता है।

एक औसत सॉलिड स्टेट ड्राइव डेटा को 200 से 500 मेगा बाइट प्रति सेकंड के स्पीड से लिख और पढ़ सकता है। वहीँ एक स्टैण्डर्ड हार्ड डिस्क ड्राइव 80 से 160 मेगा बाइट प्रति सेकंड की रीड/राइट स्पीड तक सीमित होता है।
Image Credit: Samsung

वहीँ पुराने हार्ड डिस्क ड्राइव में डेटा को एक साथ सेव करना संभव नहीं था, क्योंकि उसमें बाइनरी डेटा को डिस्क पर क्रमानुसार यानि एक के बाद एक लिखना होता था जिस कारण इसमें एक SSD की तुलना में समय भी अधिक लगता था। इसके साथ साथ उस बाइनरी डेटा को रीड करने के लिए भी एक क्रमबद्ध रूप में यानि सुरु से अंत तक पढ़ना पड़ता था।

वहीँ एक SSD, सेव्ड डेटा के एक बड़े हिस्से यानि NAND फ़्लैश सेल्स/गेट्स के समूह को एक साथ पढ़ सकता है जब्कि एक हार्ड डिस्क ड्राइव का रीड/राइट हेड डेटा को एक के बाद एक, बिट बाइ बिट पढता है। यही कारन है कि परंपरागत हार्ड डिस्क ड्राइव की तुलना में एक सॉलिड स्टेट ड्राइव की रीड/राईट स्पीड काफी ज्यादा होती है।

रीड/राईट स्पीड के हाई होने के अपने फायदे हैं, जैसे, आपका कंप्यूटर ज्यादा तेज़ी से प्रोग्राम्स को लोड कर पायेगा। कंप्यूटर चालू करने के बाद आपको, ऑपरेटिंग सिस्टम के लोड होने का इंतज़ार भी काफी कम करना पड़ेगा। एक SSD युक्त कंप्यूटर या लैपटॉप हार्ड डिस्क ड्राइव वाले कंप्यूटर के मुक़ाबले, चालू होने में काफी कम समय, यानि लगभग 10 से 20 सेकंड हीं लेता है। वहीँ एक हार्ड डिस्क ड्राइव से चलने वाले कंप्यूटर में आपको कई बार मिनटों का इंतज़ार करना पड़ता था।

SSD कम बिजली/बैटरी की खपत करता है

पुराने हार्ड डिस्क ड्राइव को यांत्रिक यानि मैकेनिकल ड्राइव भी कहा जाता है क्योंकि इसको चलाने के लिए इसमें मूविंग यानि हिलने डुलने वाले पार्ट्स या कॉम्पोनेन्ट का इस्तेमाल किया जाता था। एक हार्ड डिस्क में लगे रीड/राइट हेड को डाटा रीड या राइट करने के लिए पहले प्लैटर यानि डिस्क पर सही स्थान पर जाना होता है। इस रीड/राइट हेड अलाइनींग की प्रोसेस में काफी समय बर्बाद होता है जिस से आपके प्रोग्राम्स लोड होने में अधिक समय लेते थे और आपके फाइल्स भी देरी से खुलते थे।

इसके साथ साथ एक हार्ड डिस्क ड्राइव में, प्लैटर/डिस्क को घूमाने के लिए लगाए गए मोटर को भी हाई आरपीएम पर चलना होता है। ऐसा करने में एक हार्ड डिस्क ड्राइव काफी बिजली की खपत करता है जो आपके लैपटॉप में लगे बैटरी को जल्दी ड्रेन यानि खाली कर देता है।

वहीँ एक SSD में ऐसा कोई मूविंग पार्ट नहीं लगा होता, जिससे उसके द्वारा खपत की जाने वाली बिजली या ऊर्जा में  भी काफी गिरावट आती है और आपके लैपटॉप या टैबलेट कंप्यूटर को बैटरी बैकअप भी लम्बा मिलता है।

SSD में मैकेनिकल फेलियर न के बराबर होता है

जैसा हमने पहले आप को बताया की एक सॉलिड स्टेट ड्राइव में मूविंग पार्ट्स नहीं होते, इसी कारन से इसमें मैकेनिकल फेलियर यानि किसी घूमने वाले पार्ट के बिगड़ने या ख़राब होने की सम्भावना भी नहीं होती है। वहीँ एक हार्ड डिस्क ड्राइव के प्लैटर यानि डिस्क को घूमाने वाला मोटर यदि ख़राब हो जाए तो उसका रीड/राइट हेड डाटा को रीड या राइट नहीं कर पायेगा।

इसके साथ साथ यदि एक हार्ड डिस्क ड्राइव के रीड/राइट हेड के एक्चूएटर में यदि खराबी आ जाए तो वो प्लैटर या डिस्क पर लिखे डाटा को पढ़ने में या उस पर डाटा को लिखने में असमर्थ हो जाता है।

एक SSD में ऐसी किसी मैकेनिकल फेलियर की सम्भावना तभी होती है जब उस पर कोई क्षति या चोट आ जाए। इसके अलावा उसमें मैकेनिकल फेलियर होने की सम्भावना न के बराबर होती है।

SSD वज़न और आकार, दोनों में हार्ड डिस्क ड्राइव से छोटे होते हैं

एक SSD में डाटा सेव करने के लिए यूज़ होने वाले NAND फ़्लैश गेट्स इतने छोटे होते हैं की उनको आँख से देख पाना भी असंभव होता है। एक NAND फ़्लैश मेमोरी चिप में ऐसे गेट्स को एक दूसरे के काफी समीप लगाया जाता है ताकि जगह की बचत के साथ साथ ज्यादा से ज्यादा डाटा को भी सेव किया जा सके।

इन चिप्स में लगे गेट्स को छोटे छोटे समूहों में बांटा जाता है और ऐसे एक समूह को एक पेज कहा जाता है। इसमें से हर एक पेज में 4 KB से लेकर 16 KB तक डेटा सेव किया जा सकता है। ऐसे एक 128 से लेकर 512 पेजेज के समूह को 1 ब्लॉक कहा जाता है। एक ब्लॉक में 512 किलो बाइट से लेकर 8 मेगा बाइट तक डेटा सेव किया जा सकता है। पेज और ब्लॉक का साइज और कैपेसिटी क्या होगा ये SSD बनाने वाली कंपनी पर निर्भर करता है। बड़े कैपेसिटी के सॉलिड स्टेट ड्राइव में पेज और ब्लॉक का साइज भी बड़ा होता है।

जैसे हमने ऊपर बताया की एक ब्लॉक में 8 मेगा बाइट तक डाटा सेव किया जा सकता है। इन ब्लॉक्स को एक दुसरे के अगल बगल लगाया जाता है। और ऐसे एक 32 X 32 ब्लॉक्स के समूह को एक PLANE कहा जाता है। यानि एक प्लेन में टोटल 1024 ब्लॉक्स होते हैं। यानि एक प्लेन 1024 X 8MB प्रति ब्लॉक = 8192 MB डेटा सेव कर सकता है। यदि इस 8192 MB को गीगा बाइट में कन्वर्ट करें तो 8 गीगा बाइट डाटा होता है।

और ऐसे एक चिप में ऐसे कम से कम 64 PLANES तक लगे हो सकते हैं। इन प्लेन्स को एक किताब में लगे पन्नो की तरह एक के ऊपर एक लगाया जाता है। ऐसा एक चिप एक स्क्वायर इंच से भी छोटा होता है। और एक SSD में ऐसे कितने चिप लगे होंगे, ये उस SSD की कैपेसिटी पर निर्भर करता है। 1 TERABYTE की कैपेसिटी वाले एक SSD में ऐसे दो चिप तक लगे हो सकते हैं।

ऐसा एक छोटा सा चिप वर्तमान में 256 GB से लेकर 512 GB यानि गीगा बाइट तक डाटा को सेव कर सकता है। यही कारन है की एक सॉलिड स्टेट ड्राइव का इंटीग्रेटेड सर्किट बोर्ड पतला होने के साथ साथ काफी कम जगह लेता है। और पुराने भारी भरकम हार्ड डिस्क ड्राइव की अपेक्षा वज़न में भी काफ़ी हल्का होता है।

इसी विशेषता के कारण ज्यादातार लैपटॉप और टैबलेट कम्प्यूटरों में डाटा स्टोरेज के लिए SSD का ही इस्तेमाल किया जाता है। लैपटॉप या टैबलेट कंप्यूटर में जगह बचाने के लिए और उसे पतला से पतला बनाने के लिए एक SSD के अलावा और कोई विकल्प नहीं होता है।

इन सभी विशेषताओं को देख कर आपको यह लग सकता है की एक सॉलिड स्टेट ड्राइव में कोई कमी या ख़ामी नहीं होती होगी। पर SSD ड्राइव की भी कुछ सीमाएं या कमियाँ होती हैं। उनमें से प्रमुख लिमिटेशंस को हमने नीचे विस्तार से समझाया है। 

एक SSD राइट वियर का शिकार हो सकता है

ऊपर दिया उपशीर्षक पढ़ कर आपके मस्तिष्क में सबसे पहला सवाल यह आएगा की राइट वियर किसे कहते हैं। जैसे हमनें पहले देखा की एक सॉलिड स्टेट ड्राइव डाटा को NAND फ़्लैश गेट्स से बने चिप्स में सेव करता है। लेकिन एक कंप्यूटर में डाटा सेव करने के उपरान्त, भविष्य में उसे डिलीट करने की आवश्यकता भी पड़ सकती है। डिलीट किया जाने वाला डेटा एक से अधिक NAND फ़्लैश ब्लॉक्स में सेव किया हुआ हो सकता है। जब ऐसे डेटा को डिलीट किया जाता है तो एक NAND फ़्लैश ब्लॉक में मौजूद बाकि के डेटा को फिर से री-अरेंज यानि रिव्यवस्थित करना पड़ता है।

ऐसा करने में, उन ब्लॉक्स में मौजूद बाकि डेटा को भी इधर उधर करने की आवश्यकता पड़ सकती है। एक SSD जब ऐसा करता है तो उस डाटा को अस्थाई समय के लिए यानि टेम्पेररली, SSD में पड़े खाली जगह में सेव करता है। डेटा डिलीट किये जाने वाले ब्लॉक्स में मौजूद बाकि डेटा के री-अरेंज हो जाने के बाद, इस अस्थाई डेटा को वापस उन ब्लॉक्स में सेव कर दिया जाता है। और डिलीट हुए डेटा से खाली हुई जगह को नया डेटा सेव करने के लिए तैयार कर दिया जाता है।

एक सॉलिड स्टेट ड्राइव को प्रत्येक डेटा-डिलीट ऑपरेशन पर डेटा को री-अरेंज करना पड़ता है। ऐसा करने में वो SSD पर पहले से सेव डाटा के एक हिस्से को दोबारा फिर सेव करता है। ऐसा लगातार करने से सॉलिड स्टेट ड्राइव में स्थ्ति NAND फ़्लैश सेल्स की लाइफ में भी कमी आती है। इसी को राइट वियर कहते हैं।

राइट वियर की समस्या तब ज्यादा जटिल हो जाती है जब आप अपने SSD की टोटल कैपेसिटी का 75 से 80 परसेंट हिस्सा डेटा से भर देते हैं। तब एक SSD को डाटा री-अरेंज करने के लिये बाकि बचे 20 से 25 प्रतिशत खाली हिस्से पर ही निर्भर रहना पड़ता है। उस हिस्से में लगे NAND फ़्लैश गेट्स में डाटा के ज्यादा लिखे जाने के कारण उनकी लाइफ भी बाकि गेट्स के मुकाबले काफी कम हो जाती है।

इस राइट वियर की समस्या से निपटने के लिए SSD ओवर प्रोविशनिंग फ़ीचर का प्रयोग करते हैं, जहाँ एक SSD के टोटल कैपेसिटी के दस से पच्चीस प्रतिशत हिस्से को राइट/डिलीट ऑपरेशन के लिए रिज़र्व कर दिया जाता है। इस हिस्से का इस्तेमाल आप डेटा सेव करने के लिए नहीं कर सकते हैं।

हार्ड डिस्क ड्राइव लम्बे समय तक डाटा स्टोरेज के लिए SSD से बेहतर होता है

एक SSD में लगे NAND फ़्लैश गेट्स डेटा को स्टोर करने के लिए अपने अंदर इलेक्ट्रॉन्स को ट्रैप कर के रखते हैं इस अवस्था को उस गेट का चार्जड स्टेट भी कहा जाता है। लेकिन इन गेट्स के लगातार इस्तेमाल से इनकी लाइफ भी कम होती रहती है। एक समय ऐसा भी आता है जब एक NAND फ़्लैश गेट को इलेक्ट्रिक सिग्नल/करंट द्वारा चार्ज या डिस्चार्ज करना असंभव हो जाता है यानि इसमें डेटा सेव नहीं हो पाता है। टेक्निकल भाषा में इसे एक NAND फ़्लैश गेट के प्रोग्राम/इरेस साइकिल का पूरा हो जाना कहते हैं।

इसके साथ साथ यदि एक SSD को लम्बे समय के लिए बंद छोड़ दिया जाए तो भी उसमे लगे गेट्स अपनी इलेक्ट्रिक चार्ज को खोने लगते हैं यानि आपके डेटा के ख़राब होने की सम्भावना ज्यादा हो जाती है। एक ऐसा SSD जिसे दो या तीन साल इस्तेमाल किया जा चुका है उसमें ऐसा होने की सम्भावना अधिक होती है।

लेकिन इस जानकारी से, यदि आप इस निष्कर्ष पर निकले हैं की SSD में लम्बे समय के लिए डेटा सेव कर के नहीं रखा जा सकता तो आप गलत हैं। एक SSD को आप समय समय पर थोड़ा बहोत चलाते रहें तो इसमें मौजूद डाटा एक दशक के लम्बे समय तक भी टिक सकता है। लेकिन यदि आप SSD को बिना चलाये, उचित तापमान और ह्युमिडिटी वाले जगह पर स्टोर करके रखें तो भी इसमें रखा डेटा 5 साल तक सुरक्षित रह सकता है। उसके बाद यदि उस डाटा में थोड़ी बहोत खराबी आती भी है तो भी वह SSD उसे चलाने पर उसे फिर से ठीक कर सकता है।

SSD का प्रति यूनिट स्टोरेज कॉस्ट हार्ड डिस्क ड्राइव से अधिक होता है

एक सॉलिड स्टेट ड्राइव में आपको प्रति यूनिट स्टोरेज कॉस्ट ज्यादा देना पड़ता है जिसे यदि आसान शब्दों में बतायें तो यह मान लीजिये की 1 गीगा बाइट डाटा स्टोरेज के लिए हार्ड डिस्क ड्राइव में आने वाले खर्च के तुलना में SSD में आने वाला खर्च लगभग दोगुना या तिगुना हो सकता है। 

यही कारण है की SSD उसी कैपेसिटी के हार्ड डिस्क ड्राइव की तुलना में ज्यादा महँगे दाम पर आते हैं। लेकिन जैसे जैसे SSD का चलन बढ़ रहा है वैसे वैसे SSD की कीमतों में भी गिरावट आई है। इसके साथ साथ इनके मैन्युफैक्चरिंग के तरीकों में भी सुधार और प्रगति हुई है जिस से इनके कैपेसिटी को भी बढ़ाया गया है। 

अंत में हम यह आशा करते हैं की SSD से जुड़े इन महत्वपूर्ण सवालों का जवाब आपको मिल गया होगा।