अमेरिका के टेम्पे, एरिज़ोना में रहने वाली Elaine Herzberg 18 March 2018 को अपने घर से कुछ दूर अपने साइकिल के साथ टहलते हुए एक चार लेन के हाईवे को क्रॉस कर रहीं थीं। तभी वो एक गाड़ी से टकरायीं और हॉस्पिटल ले जाने के दौरान उनकी मृत्यु हो गयी।
अब इसमें उनकी बुरी किस्मत हीं कहिये की वो अमेरिका की पहली पेडेस्ट्रियन थीं जो एक सेल्फ ड्राइविंग कार से हुए एक्सीडेंट में अपनी जान गँवा बैठीं थीं। असल में Elaine Herzberg जिस गाड़ी से टकराईं थी वो कोई आम कार नहीं थी। वह एक वॉल्वो XC90 कार थी जिसे UBER कंपनी दवारा ऑपरेट किया जा रहा था। UBER ने इस साधारण कार को मॉडिफाई करके एक सेल्फ ड्राइविंग कार में तब्दील कर दिया था।
हादसे वाले दिन जब कार Elaine Herzberg से टकराई थी तब कार ऑटोनोमस मोड यानि कार में लगे कंप्यूटर और सॉफ्टवेयर द्वारा चलाई जा रही थी। लेकिन ऐसा नहीं था की कार में उस वक़्त कोई मौजूद नहीं था। कार की निगरानी के लिए UBER कंपनी के एम्प्लोयी Rafaela Vasquez कार में मौजूद थीं। उन्हें ये आदेश भी दिए गए थे की यदि कार में मौजूद कंप्यूटर कोई गलती करे तो कार की कमान वो संभाल लें।
लेकिन Rafaela Vasquez ऐसा कर पातीं उस से पहले देर हो चुकी थी, जिसकी कीमत Elaine Herzberg को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। UBER कंपनी उस समय ड्राइवरलेस कार पर रिसर्च और टेस्टिंग कर रही थी। Uber के बारे में यदि आप कुछ नहीं जानते तो आपको बता दें की यह एक राइड शेयरिंग ऍप है जिसका इस्तेमाल करके आप कहीं जाने के लिए घर बैठे एक कार बुक कर सकते हैं। UBER इस सर्विस को देने के लिए ड्राइवर्स को पैसे भी देती है।
अब आपके लिए यह समझना मुश्किल नहीं होगा की UBER जैसी कंपनियां सेल्फ ड्राइविंग और ड्राइवर लेस कार में क्यों इंटरेस्ट ले रहीं हैं। लेकिन Elaine Herzberg के साथ घटे इस हादसे का इतना बड़ा हल्ला मचा की Uber ने अपने इस सेल्फ ड्राइविंग कार की टेस्टिंग को तुरंत रोक दिया और उसके बाद कंपनी ने ड्राइवर लेस्स कार पर कोई और परिक्षण नहीं किये हैं।
लेकिन सेल्फ ड्राइविंग कार के साथ ये पहला एक्सीडेंट नहीं था। इस से पहले भी एक सेमी ऑटोनोमस Tesla कार के साथ ऐसा हादसा हुआ था जिसमे उस कार में मौजूद व्यक्ति को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। 7 मई 2016 को जोशुआ ब्राउन नाम के एक व्यक्ति अपनी सेमि औटनोमोस Tesla मॉडल S कार में कहीं जाते समय हाईवे पर खड़े एक ट्रैक्टर ट्रेलर से टकरा गए थे।
हादसे के वक़्त गाड़ी स्वयं चल रही थी। लेकिन इस हादसे में गलती उनकी भी थी क्योंकि यह गाड़ी खुद तो चल सकती थी पर आपको अपना हाथ स्टीयरिंग व्हील से हटाना नहीं होता है, ताकि गाड़ी यदि कोई गलती करे तो उसे आप तुरंत सुधार सकें। परन्तु ब्राउन ऐसा नहीं कर रहे थे। गाड़ी में लगे कंप्यूटर द्वारा सात बार वार्निंग देने के बावजूद उन्होंने गाड़ी की कमान अपने हाथ में नहीं ली और गाड़ी की रफ़्तार भी बढ़ा दी थी।
लेकिन अब ये उनकी गलती कहें या उनका अपनी गाड़ी पर जरूरत से ज्यादा भरोषा, इस गलती की उन्हें बड़ी भारी कीमत चुकानी पड़ी थी। आज की तारीख तक ऐसे 23 हादसे हो चुके हैं जहाँ एक्सीडेंट में एक सेल्फ ड्राइविंग व्हीकल या एक सेमि ऑटोनोमस गाड़ी या कार इनवॉल्वड थी।
ड्राइवरलेस गाड़ियों को पॉपुलर होने में कितना समय लगेगा
तो फिर क्या इन हादशों से ये साबित होता है की हमारी सड़कों पर स्वयं चलने वाली ड्राइवर लेस्स कार या गाड़ियां कभी नहीं आ पाएंगी। एक समय था जब TESLA जैसी कंपनियां ये दवा कर रहीं थीं की भविष्य में न केवल कार बल्कि ट्रक जैसी बड़ी गाड़ियां भी अपने आप बिना किसी इंसानी ड्राइवर के जरूरत के चलेंगी। उनका यह भी कहना था की 2030 तक सड़कों पर चलने वाली ज्यादातर गाड़ियां ऐसी हीं होंगी। परन्तु भारत जैसे देशों को तो छोड़िये यूरोप और अमेरिका के देशों में भी ड्राइवर लेस्स गाड़ियों का चलन नहीं बढ़ा है। इसके लिए इन गाड़ियों द्वारा की जाने वाली गलतियां भी जिम्मेवार हैं।
जब अमेरिका की कम भीड़ भाड़ वाली सड़कों पर ये गाड़ियां अपने आप को गलती करने से नहीं रोक पा रहीं हैं तो भारत जैसे देशों में जहाँ सड़कों पर कभी कभार गाड़ियां कम और इंसान ज्यादा नज़र आते हैं, ऐसी गाड़ियों का क्या परफॉरमेंस होगा इसका अंदाज़ा आप स्वयं लगा सकते हैं।
क्या सच में ड्राइवर लेस्स गाड़ियां सेफ हैं ?
ड्राइवर लेस्स या सेल्फ ड्राइविंग कार बनाने वाली कंपनियों की बात करें तो वो यही दावा करती हैं की उनकी गाड़ियां इंसानो के मुकाबले में ज्यादा सुरक्षित हैं और उनके द्वारा की जाने वाली गलतियों में अभी तक ऐसी गलतियां देखने को नहीं मिली हैं जो इंसान करते हैं।
जैसे टैल्गेटिंग एक ऐसी समस्या है जो नौसिखिये ड्राइवर हमेशा करते हैं जहाँ वे अपने आगे वाली गाड़ी से जरूरी डिस्टेंस बना कर नहीं चलते, जो हादसे का कारन भी बनती है। ड्राइवर लेस्स गाड़ियां ऐसी गलती तो नहीं करती पर उन के द्वारा की जाने वाली कुछ गलतियां ऐसी हैं जो इंसानों द्वारा लगभग न के बराबर की जाती हैं।
ड्राइवर लेस्स गाड़ियों को अपने आस पास के गाड़ियों से जरूरी दूरी बनाये रखने के लिए सेंसर्स की जरूरत पड़ती है। गाड़ी में लगा कंप्यूटर इन सेंसर्स के डाटा को पढ़ने के बाद प्रतिक्रिया करता है। लेकिन ड्राइवर लेस्स गाड़ी में लगे कंप्यूटर का रिस्पांस टाइम अभी भी इंसानो के रिस्पांस टाइम को मैच नहीं कर पाया है। यानि कोई अचानक से इन गाड़ियों के सामने आ जाये तो ये तुरंत रुकने का फैसला जल्दी नहीं ले पाती हैं।
इसके साथ साथ इन गाड़ियों में लगे कंप्यूटर को रास्तों में लगे साइन और सिग्नल लाइट्स को भी पहचानना होता है ताकि ये ट्रैफिक सिंग्नल पर कोई गलती न करें। लेकिन कई बार ऐसा भी हुआ है की रोड के किनारे लगे किसी लाल रंग के गुब्बारे को देख कर भी ये गाड़ियां उसे स्टॉप लाइट समझ लेती थीं। रोड के किनारे दुकानों में लगे LED लाइट्स से भी ये गाड़ियां कंफ्यूज हो रहीं थीं।
ऐसा भी हुआ है की रोड के किनारे लगे किसी बिलबोर्ड पर छपे ऐड में बने स्टॉप साइन को इन्होने ने असली स्टॉप साइन समझ लिया था और बीच सड़क में रुक गयीं थीं। और तो और पूर्णिमा के चाँद को क्षितिज पर निकला देख कर उसे ये ट्रैफिक सिग्नल की पीली लाइट समझ लेते थे और अपनी रफ़्तार धीमी कर देते थे।
ऐसी गलती की सम्भावना इंसानी ड्राइवर के साथ लगभग न के बराबर होती है। साथ हीं ये गाड़ियां असल इंसानो और इंसानो की छवियों या फोटो में फर्क करने में भी कई बार गलती कर देती हैं, जो समस्या इंसानो के साथ नहीं होती। यदि सड़क पर इंसानो का पुतला या कट आउट भी खड़ा कर दिया जाये तो ये गाड़ियां उसे असल इंसान समझ कर रियेक्ट करती थीं।
इनमे से कई गलतियों को सुधार दिया गया है पर अब भी ये गाड़ियां इस तरह की गलतियां करने से अपने आप को पूरी तरह से नहीं रोक पायीं हैं।
तो क्या है इन गाड़ियों का भविष्य ?
जब ड्राइवर लेस्स गाड़ियां बनायीं गयीं थी तो इनको बनाने वाली कंपनियों को यही लगा था की उन्होंने एक फुल प्रूफ सिस्टम बनाया है जिसमे गलती की गुंजाईश इंसानो के मुकाबले में काफी कम है। पर जैसे जैसे इन कंपनियों ने इनको असल जीवन में आजमाना शुरू किया तो उन्हें एहसास हुआ की अभी उन्हें कितना कुछ और करना है।
इस तरह की गलतियों और खामियों का पता तभी चला जब इनको बनाने वाली कम्पनियों को इन गाड़ियों को रोड पर उतारने की इजाजत मिली। लेकिन फिर हादशों का दौर भी आया और लोगों के मन में कई सवाल भी आये। यदि हम इंसानो द्वारा होने वाले हादसों की बात करें तो WHO की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में हर साल 12 लाख लोग सड़क हादशों में अपनी जान गंवाते हैं।
लेकिन इंसानो की गलती की उतनी बात नहीं होती जितनी ड्राइवर लेस्स गाड़ियों के साथ होने वाले हादशों की बात होती है। लोग इंसानो को तो माफ़ कर देते हैं पर इन गाड़ियों की छोटी गलती को भी वो नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहते। कहने को तो यात्री विमान भी हादशों का शिकार होते हैं पर हम उनसे यात्रा करना नहीं छोड़ते, तो फिर ड्राइवर लेस्स गाड़ियों को दोबारा मौका देने में क्या हर्ज़ है।
इनको बनाने वाली कम्पनियाँ, असल दुनिया में और रोड की असल परिस्थितियों में इन गाड़ियों को जब तक टेस्ट नहीं करेंगी वो इनको बेहतर नहीं कर पाएंगी। इसलिए सरकारों को और जनता को भी इन गाड़ियों की टेस्टिंग के लिए इजाजत देनी होगी। और इन कंपनियों को भी इन गाड़ियों के रोड पर दुबारा आने से पहले इनकी पिछली गलतियों में सुधार करने की जरूरत है।