बिलियर्ड्स का खेल भले हीं आपने खेला न हो पर किसी को खेलते देखा जरूर होगा। बिलियर्ड्स यानि पूल के खेल को एक टेबल पर खेला जाता है, जिसमे आपको क्रिकेट बॉल से थोड़े छोटे आकार के कई रंगीन बॉल्स को एक सफ़ेद रंग के बॉल से हिट करना होता है। टेबल के किनारे 6 छेद या पॉकेट्स बने होते हैं जिसमे रंगीन बॉल्स के चले जाने पर आपको पॉइंट्स मिलते हैं।
सफ़ेद बॉल को हिट करने के लिए एक लम्बी छड़ी का इस्तेमाल करना होता है। इस खेल में यदि आपको महारत हासिल करनी है तो आपको ये पहले हीं अंदाज़ा लगाना होता है की आपके द्वारा सफ़ेद बॉल को हिट करने पर ये किस रंगीन बॉल से टकरा सकती है और यह किस पॉकेट या छेद में जाकर गिरेगी।
इस खेल में सफ़ेद गेंद से किसी एक रंगीन गेंद को मारना आसान होता है और यह कोई नौसिखिया खिलाडी भी कर सकता है। लेकिन एक शॉट में दो गेंदों को हिट करना आसान नहीं होता, फिर भी कई प्रोफेशनल खिलाडी ऐसा भी बड़ी आसानी से कर लेते हैं। लेकिन एक बार में 3 से ज्यादा गेंदों को हिट करना आसान नहीं होता है।
अगर कोई खिलाडी एक हीं शॉट में 3 से ज्यादा गेंदों को हिट करता है तो उसे आप एक तुक्का हीं कह सकते हैं क्योंकि स्वयं वह खिलाडी भी अंदाज़ा नहीं लगा सकता की सफ़ेद बॉल किस किस रंगीन बॉल से टकराने वाली थी। विज्ञान की भाषा में इस फेनोमेनन को केऑस थ्योरी भी कहा जाता है।
यदि पूल के खेल में कोई आपसे ये कहे की एक अकेले शॉट से टेबल पर मौजूद सभी गेंदों को हिट करना है तो आपका जवाब यही होगा की ऐसा करना मुमकिन नहीं है। क्योंकि हम सफ़ेद बॉल द्वारा एक या दो गेंद से टकराने का प्रेडिक्शन तो कर सकते हैं लेकिन जैसे हीं गेंदों की संख्या थोड़ी भी बढ़ाई जाती है हमारे प्रेडिक्शन धरे के धरे रह जाते हैं। ऐसे में यह बता पाना की सफ़ेद बॉल पहले और दुसरे और फिर तीसरे गेंद से टकराने के बाद किस गेंद से टकराएगी यह लगभग असंभव हो जाता है।
हमारी दुनिया हमें इस सच्चाई या फैक्ट से बहोत कम उम्र में हमें अवगत करा देती है। आसमान में फेंकी गयी गेंद कहाँ गिरेगी इसका अंदाज़ा तो हम थोड़ा बहोत लगा भी सकते हैं लेकिन गिरने के बाद ये कहाँ जाएगी और कहाँ रुकेगी इसका सटीक सटीक अंदाज़ा लगाना असंभव प्रतीत होता है। पहाड़ों से निकलने वाली नदी क्या रास्ता बनाएगी इसका मोटा मोटा अनुमान तो लगा सकते हैं आप लेकिन जब नदी उफान पर होती है तो वो अपना रास्ता कहाँ और कैसे बदलेगी इसका पता नहीं लगता है। किस साल बारिश कौन से सहर को जलमग्न कर दे इसका अंदाज़ा लगाना भी असंभव होता है।
आसमान में उछाले गए एक सिक्के का हेड या टेल आना इसका सटीक जवाब देना इस लिए असंभव हो जाता है क्योंकि जब सिक्का उछाला जाता है तो आपके उँगलियों से उस पर लगने वाली ऊर्जा, हवा का बहाव, प्रेशर उसमें मौजूद आद्रता, गुरुत्वाकर्षण और पता नहीं कितने अनगिनत फैक्टर्स आपस में मिल कर यह निश्चित करते हैं की सिक्का कैसे गिरेगा। इस तरह के रिजल्ट्स का अंदाज़ा लगाना असंभव होता है क्योंकि इतने सारे वेरिएबल्स के आपस में होने वाले इंटेरैक्शन को प्रेडिक्ट कर पाना लगभग असंभव होता है और इसी को वैज्ञानिक केओस थ्योरी कहते हैं।
क्या है केओस थ्योरी और बटरफ्लाई इफ़ेक्ट
एडवर्ड लोरेन्ज एक गणितज्ञ और मौसम वैज्ञानिक थे। साल 1961 में वे Royal McBee LGP-30 डिजिटल कंप्यूटर का इस्तेमाल कर के मौसम का अनुमान लगा रहे थे। लोरेन्ज अपने कंप्यूटर में 12 तरह के वेरिएबल का इस्तेमाल कर रहे थे। वे अपने कंप्यूटर में हवा की गति, तापमान, ह्यूमिडिटी जैसे डाटा को डालकर आने वाले मौसम का अंदाज़ा लगाते थे।
एक बार लोरेन्ज ने मशीन में डाटा को डालने के बाद उसके रिजल्ट को नोट किया। अगले दिन किसी कारन उनको वह रिजल्ट शीट नहीं मिला और उनको मशीन में डाटा वापस डालना पड़ा लेकिन उन्होंने देखा की अगले दिन एकदम एक समान डाटा के डाले जाने के वावजूद कंप्यूटर ने बिलकुल अलग रिजल्ट दिया था। लोरेन्ज को बहोत समय तक यह समझ में नहीं आया की ऐसा क्यों हुआ है।
लेकिन कुछ समय बाद उनको समझ में आया की ऐसा डाटा में एक नंबर के राउंडिंग की वजह से हो रहा था। असल में कंप्यूटर अपने डाटा को 6 डिजिट के प्रिसिशन के साथ एंटर करता था लेकिन इसे प्रिंट करते वक़्त 3 डिजिट का कर दिया जाता था। यानि 0.567123 को राउंड कर के 0.567 कर दिया जाता था। यह एक बहोत बड़ी गलती नहीं थी लेकिन डाटा में किया जाने वाला ये मामूली सा बदलाव भी आगे चलकर एक मशीन द्वारा दिये जाने वाले रिजल्ट में भारी बदलाव कर रहा था।
पहली बार और दूसरी बार डाले जाने वाले डाटा में मात्रा ये छोटा सा फर्क भी कंप्यूटर के कॅल्क्युलेशन्स में आगे चलकर एक बड़े बदलाव के रूप में सामने आ रहा था।
लोरेन्ज ने इसे हीं बटरफ्लाई इफ़ेक्ट का नाम दिया था। उनका कहना था की मौसम का अनुमान लगाना इसलिए इतना मुश्किल है क्योंकि इसमें अनगिनत वेरिएबल्स इनवॉल्वड होते हैं। उनके एक उदहारण के अनुसार ब्राज़ील में किसी तितली के पंख फड़फड़ाने से भी एक इवेंट्स की श्रृंखला सुरु होगी जो आखिर कर इतना बड़ा रूप ले सकती है की उसकी वजह से किसी देश में तूफ़ान तक आ जाये।
बटरफ्लाई इफ़ेक्ट न केवल मौसम के सन्दर्भ में बल्कि बाकि फ़ील्ड्स में भी देखा जा रहा था। स्टॉक मार्किट का अनुमान लगाना भी उतना हीं मुश्किल है जितना मौसम का अंदाज़ा लगाना। चीन में एक लैब से निकला वायरस समूचे विश्व में इतनी तेजी से फैल जायेगा और इतने बड़े पैमाने पर लोगों की जान जाएगी यह भी बटरफ्लाई इफ़ेक्ट का हीं उदहारण है।
यानि किसी व्यक्ति द्वारा लिया गया एक छोटा सा कदम बड़े पैमाने पर कोहराम मचा सकता है। वर्ल्ड वॉर 2 के दौरान अमेरिका का युद्ध में कूदना और फिर जापान पर परमाणु बम्ब का गिरना भी इसका एक उदहारण हो सकता है।
साल 2004 में The Butterfly Effect नाम की एक हॉलीवुड मूवी भी आयी थी जिसमे इसी कांसेप्ट को दिखाया गया था। Ashton Kutcher द्वारा अभिनीत इस फिल्म का मुख्य किरदार अपने अतीत में जाकर अपनी कुछ गलतियों को सही करना चाहता है पर उसके लाख कोशिश करने के बाद भी उसका जीवन ऐसा नहीं हो पाता जैसा वो चाहता है।