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नॉवेल्स और किताबों के शौक़ीन हैं तो E-Reader के बारे में जान लीजिये

आज के डिजिटल युग में हर चीज़ ऑनलाइन या फिर डिजिटल हो गयी है। अब बड़े से बड़े किताब या नोवेल्स भी कुछ किलोबाइट के पीडीऍफ़ फाइल में फिट हो जाते हैं। इन फाइल्स को आप जहाँ और जब चाहें अपने मोबाइल, लैपटॉप, डेस्कटॉप और टैबलेट पर पढ़ सकते हैं। 

परन्तु कुछ लोग अभी भी किताबों को डिजिटल मध्यम यानि किसी स्क्रीन पर पढ़ना पसंद नहीं करते। इसके लिए वो स्क्रीन से निकलने वाली रौशनी को भी जिम्मेवार ठहराते हैं जो यदि लम्बे समय तक देखी जाए तो आँखों पर बुरा असर भी डाल सकती है। फ़ोन स्क्रीन में मौजूद ब्लू लाइट आपके सरकेडियम रिदम पर भी असर डालती है। 

यानि स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताने पर आपको नींद ठीक से नहीं आती। जिन लोगों को यह समस्या होती है वो किताबों को स्क्रीन पर पढ़ना पसंद नहीं करते। ऐसे में आपको यह लग सकता है जैसे आपके पास कागज़ से बने किताबों को पढ़ने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है।

परन्तु ऐसा नहीं है यदि आप कागज़ पर किताबों को पढ़ने के आदि हो चुके हैं तो इ-रीडर आपके लिए एक बढ़िया विकल्प हो सकता है। लेकिन यदि आपने आज से पहले ये नाम नहीं सुना है या इसके बारे में ज्यादा नहीं जानते तो आज हम नीचे इसके बारे में विस्तार से जानकारी देने वाले हैं। 

इ-रीडर ( E – Reader) क्या होता है।

वैसे तो हर वो डिवाइस जिसपर एक डिजिटल किताब को पढ़ा जा सकता है वो एक इ-रीडर कही जा सकती है। देखा जाए तो आप अपने फ़ोन या टैबलेट को भी एक इ-रीडर कह सकते हैं। पर आज यदि हम इस शब्द का प्रयोग करते हैं तो उसका मतलब ऐसा इ-रीडर होता है जिसमे इ-इंक वाले इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले का इस्तेमाल किया जाता है।

E-ink वाले इ-रीडर में आपको डिजिटल किताबें एक पेपर जैसे सतह पर पढ़ने को मिलती हैं। इसमें स्क्रीन की बैक लाइट से होने वाले ग्लेयर की समस्या नहीं होती है।

यदि आप किसी इ-इंक वाले डिस्प्ले यानि इ-रीडर के स्क्रीन को सामने से देखें तो आप पाएंगे की स्क्रीन के चालू रहने पर भी उसमें से कोई रौशनी नहीं आती और वो बिलकुल एक सफ़ेद कागज़ जैसा दीखता है। आप उस स्क्रीन पर लिखे शब्दों को किसी कागज़ पर लिखे शब्दों की तरह हीं पढ़ सकते हैं। लेकिन एक किताब की तरह जब आप इसे अँधेरे में रख दें तो आप इस पर लिखे शब्दों को नहीं पढ़ पाएंगे।

आज बाजार में मिलने वाले ज्यादातर इ-रीडर्स में इ-इंक डिस्प्ले लगा होता है जो एलसीडी स्क्रीन से थोड़ा अलग तरीके से काम करता है। यदि एक एलसीडी स्क्रीन की बात करें तो उनमें लाखों की संख्या में छोटे छोटे लिक्विड क्रिस्टलस लगे होते हैं। और उसके पीछे एक LED बल्बों की बैक लाइट लगी होती है जो लिक्विड क्रिस्टल द्वारा बनायी गयी तस्वीर को रौशन करती है ताकि आप उसे ठीक से देख सकें।

The different layers in an LCD or led tv. The backlight produces light which passes through the liquid crystal layer and finally the color filter to form the image.
एलसीडी टीवी में अलग अलग लेयर्स लगे होते हैं। सबसे पीछे लगे LED बैक लाइट से निकल कर आ रही रौशनी लिक्विड क्रिस्टल लेयर से गुजरते हुए कलर फ़िल्टर तक पहुँचती है और स्क्रीन पर तस्वीर दिखाई देती है।
Photo Credit: digitional.com

यदि एक एलसीडी का बैक लाइट काम करना बंद कर दे तो आप अपने स्क्रीन पर बने तस्वीर को साफ़ नहीं देख पाएंगे। लेकिन एक E-ink रीडर में बिना बैक लाइट के भी तस्वीर को साफ़ साफ़ देख सकते हैं। इस कारण से एक इ-इंक रीडर काफी कम ऊर्जा पर चल सकता है। एक फुल चार्ज पर आप इसे हफ़्तों तक इस्तेमाल कर सकते हैं। 

इ-इंक (e-ink) डिस्प्ले काम कैसे करता है।

इ-इंक डिस्प्ले में मौजूद पिक्सेल्स के अंदर एक माइक्रो कैप्सूल होता है जिसमे एक क्लियर फ्लूइड भरा होता है। इस कैप्सूल का आकार यानि डायमीटर आपके बालों के डायमीटर के बराबर होता है। इसमें सफ़ेद और काले रंग के दो पिग्मेंट डले होते हैं जो बिजली देने पर पॉजिटिव और नेगेटिव चार्ज की तरफ आकर्षित होते हैं।

the working of an e-ink capsule with pigment
इ-इंक रीडर के पिक्सेल एक एलसीडी या ओलेड टीवी में लगे पिक्सेल से बिलकुल भिन्न होते हैं। और इनके काम करने का तरीका भी अलग होता है।
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ऐसे एक डिस्प्ले में ऐसे लाखों पिक्सेल्स को अगल बगल लगाया जाता है। जब एक पिक्सेल के माइक्रो कैप्सूल के ऊपर और नीचे लगे पॉजिटिव इलेक्ट्रोड में बिजली यानि सिग्नल भेजा जाता है तो पॉजिटिव चार्ज वाला पिग्मेंट नेगेटिव चार्ज वाले इलेक्ट्रोड की तरफ इकठ्ठा हो जाता है और नेगेटिव चार्ज वाला पिग्मेंट पॉजिटिव चार्ज वाले इलेक्ट्रोड लेयर की तरफ इकठ्ठा हो जाता है।

यदि ऊपर वाले इलेक्ट्रोड लेयर में नेगेटिव चार्ज भेजा जाए तो नीचे वाला सफ़ेद पिग्मेंट ऊपर भी चला जायेगा और काला पिग्मेंट नीचे इकठ्ठा हो जायेगा। जब एक पिक्सेल ऐसा करता है तो सतह पर एक काले या सफ़ेद डॉट का निर्माण करता है। इसी तरह से सभी पिक्सेल्स को सिग्नल भेज कर स्क्रीन पर तस्वीर का निर्माण किया जाता है।

इ-इंक रीडर में इस्तेमाल होने वाली इस टेक्नोलॉजी के अपने फायदे हैं। एक बार स्क्रीन पर तस्वीर का निर्माण हो जाने पर उसको बनाये रखने के लिए बहोत कम या लगभग न के समान ऊर्जा की जरूरत होती है। इ-इंक रीडर को आप इस अवस्था में यदि हफ्ते भर के लिए भी चालू छोड़ दें तो भी उसकी बैटरी में चार्ज जस की तस बनी रहेगी।

बैटरी का इस्तेमाल केवल स्क्रीन पर बनी तस्वीर को बदलने के लिए हीं होता है। यानि आप जब अपनी डिजिटल किताब का अगला पन्ना खोलेंगे तभी उसमे कुछ ऊर्जा लगेगी। कुछ इ-इंक रीडर्स में आपको बैक लाइट की सुविधा भी मिलती है यानि इन्हें आप अँधेरे में पढ़ सकते हैं। लेकिन उसमे बैटरी जल्दी ड्रेन होता है।

लेकिन इ-इंक रीडर की कुछ सीमाएं यानि लिमिटेशंस भी होती हैं जिन्हें हम नीचे समझा रहें हैं। 

इ-इंक रीडर में ग्रे स्केल रंगो का इस्तेमाल होता है 

ग्रेस्केल से यह मतलब है की आपके स्क्रीन पर यदि कोई तस्वीर दिखाई जा रही है तो वो केवल ब्लैक एंड वाइट रंगो यानि ग्रेस्केल में हीं दिखाई देगी। बाज़ार में कलर डिस्प्ले वाले इ-इंक रीडर तो मौजूद हैं पर अभी इस टेक्नोलॉजी में इतना विकास नहीं हुआ है। इ-रीडर में दिखने वाले रंग आपको एक मैगज़ीन पर छपे रंगो जितने वाइब्रेंट या खिले हुए नहीं दिखेंगे।

an e-ink e-reader mostly produces grayscale images. if you want a colored e-ink display then you would have to pay more
ज्यादातर एंट्री लेवल इ-रीडरों में आपको ग्रेस्केल रंगो से हीं संतोष करना पड़ता है।
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बैक लाइट वाले एलसीडी डिस्प्ले का इस्तेमाल करने वाले टैबलेट और स्मार्ट फ़ोन का मार्केट इन इ-इंक रीडर के मार्केट से कहीं ज्यादा है। आज आप अपने हर डिजिटल काम के लिए एक लैपटॉप और स्मार्टफोन पर हीं निर्भर रहते हैं ऐसे में एक इ रीडर के एक्स्ट्रा बोझ और कीमत को चुकाने के लिए कुछ लोग हीं तैयार होते हैं।

इसके अल्वा इ-इंक रीडर्स में इस्तेमाल होने वाली टेक्नोलॉजी के ज्यादातर पेटेंट्स इ-इंक कारपोरेशन नाम की अमेरिकन कंपनी के पास हैं। यदि कोई कंपनी इस टेक्नोलॉजी का प्रयोग करके कोई इ-रीडर बनाना चाहती है तो उसे पहले इस कारपोरेशन से परमिशन लेनी पड़ती है और साथ हीं एक कीमत भी चुकानी पड़ती है। इ-इंक रीडर के विकास में यह भी एक बाधा है जिसने ज्यादातर कंपनियों को अपना इ-इंक रीडर बनाने से रोक कर रखा है। 

पर अब इस कंपनी के बहोत से पेटेंट एक्सपायर हो चुके हैं और भविष्य में इस फील्ड में कुछ नए डेवलपमेंट देखने को जरूर मिलेंगे जिसमें वाइब्रेंट कलर डिस्प्ले वाले इ-इंक रीडर भी शामिल हैं।

वीडियो चलाने की काबलियत नहीं होती 

ज्यादातर एंट्री लेवल इ-इंक रीडर वीडियो दिखाने में असक्षम होते हैं। वीडियो दिखाने के लिए एक डिस्प्ले का हाई रेस्पॉन्स रेट वाले होना जरूरी है। यानि पिक्सेल को सिग्नल मिलते हीं तुरंत रियेक्ट करना होता है। लेकिन इ-इंक डिस्प्ले ऐसा नहीं कर पाते हैं।

लेकिन पिछले एक दो सालों में ऐसे इ-रीडर आएं हैं जिनमे लगे इ-इंक डिस्प्ले स्लो फ्रेम रेट पर वीडियो चला सकते हैं। पर उनके लिए आपको एक भारी भरकम कीमत चुकानी पड़ेगी।

खरीदने के लिए गिने चुने कम्पनियों के ऑप्शन्स 

यदि इ-इंक रीडर्स की बात करें तो मार्केट में ज्यादा ऑप्शंस उपलब्ध नहीं हैं। आपको कुछ सीमित कंपनियों द्वारा बनाये गए प्रोडक्ट्स में से हीं चुनना पड़ता है। अमेज़ॉन द्वारा बनाया गया किंडल इ-रीडर भारत में उपलब्ध है। इसके अलावा बार्नस एंड नोबल्स, बुकिंन, कोबो, ओनिक्स और पॉकेट बुक जैसी कुछ कंपनियां हैं जो इ-इंक रीडर बनाती हैं। अमेज़न द्वारा बनाये गए इ-रीडर ग्रेस्केल यानि ब्लैक एंड वाइट डिस्प्ले के साथ हीं आते हैं। और इनमें टच स्क्रीन भी लगा होता है।

तो ऐसे में यदि आप किताबों के शौक़ीन हैं तो इ-इंक रीडर आपके लिए एक बढ़िया विकल्प हो सकता है। इसे एक चार्ज पर आप हफ़्तों चला सकते हैं। और आपके फ़ोन और लैपटॉप की तरह इसे जल्दी जल्दी चार्ज नहीं करना पड़ता है। इसे आप रौशनी में एक कागज़ की तरह साफ़ साफ़ पढ़ सकते हैं। धुप में भी एक एलसीडी के उलट इसकी विजिबिलिटी पर कोई असर नहीं पड़ता है। उलटे ये ज्यादा रौशनी में ज्यादा ब्राइट यानि सफ़ेद नज़र आते हैं।

एक इ-इंक डिस्प्ले वाला इ-रीडर धुप या रौशनी में ज्यादा बेहतर दीखता है।
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तो आशा करते हैं की हम आपको एक इ-इंक रीडर के काम करने के तरीके और उसके फायदों को अच्छे से समझा पाएं हैं।