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क्या इंसानों का समाज भी इन चूहों जैसा हो जायेगा, क्या है चूहों का स्वर्ग जो नर्क से भी बदतर है

क्या आप एक ऐसे समाज में रहना पसंद करेंगे जहाँ आपको हर तरह की सुविधा मिले। आपको भोजन पानी की व्यवस्था न करनी पड़े और खाना हर समय उपलब्ध रहे। आपको ज्यादा गर्म या सर्द मौसम की मार भी न सहनी पड़े। 

आपको किसी प्रकार के खतरे या दुश्मन का सामना भी न करना पड़े यानि आपको हर प्रकार की सुरक्षा दी जाए। आपको किसी बीमारी का खतरा न हो और कोई शारीरिक चोट आने पर तुरंत आपको मेडिकल सहायता दी जाए। आपको अपने पसंद का साथी चुन ने की पूरी छूट और स्वतंत्रता दी जाए।

यह तो स्वाभाविक है की हम में से अधिकतर लोगों को ऐसी जगह किसी स्वर्ग से कम नहीं लगेगी और आप में से कई लोग यहाँ रहना भी चाहेंगे। लेकिन ऐसा समाज किसी के ख्यालों में हीं हो सकता है या ऐसी जगह किसी स्वर्ग जैसे हीं प्रतीत होगी। और ऐसे स्वर्ग के बारे में हम केवल कल्पना हीं कर सकते हैं।

असलियत में तो हमारे समाज में कई समस्याएं होती हैं। साथ हीं हमारे समाज में असमानता, गरीबी, संसाधनों का आभाव भी होता है। कई लोग अपनी जरूरत से कहीं ज्यादा साधन संपन्न जीवन जीते हैं तो कई अपने रोटी, कपडा और मकान जैसी जरूरी चीज़ों की व्यवस्था कर पाने में भी असमर्थ होते हैं।

लेकिन यदि एक ऐसे समाज का निर्माण किया जाए जिसमे हर व्यक्ति के पास हर जरूरी संसाधन मौजूद हों और उसे उनको जुटाने के लिए कोई मेहनत न करनी पड़े या उसे उनके लिए किसी से लड़ना न पड़े तो क्या वह समाज एक आदर्श समाज कहलायेगा? क्या ऐसा समाज मनुष्यों को रास आएगा और क्या वो मिल जुल कर रह पाएंगे।

यह ख्याल एक अमेरिकन वैज्ञानिक John Bumpass Calhoun के दिमाग में भी उपजा था। वे देखना चाहते थे की ऐसे समाज को यदि बनाया जाए तो इसका क्या परिणाम होता है। लेकिन इतना तो Calhoun भी जानते थे की वे ऐसा समाज मनुष्यों पर प्रयोग करके नहीं बना सकते थे। इसलिए उन्होंने ने अपने प्रयोग के लिए एक ऐसे जानवर को चुना जो इंसानो जैसे भले हीं दीखते न हों पर उनके द्वारा बनाया जाने वाला समाज हमारे समाज से काफी मिलता जुलता है।

चूहे भी इंसानो की तरह ऐसे समाज में रहते हैं जहाँ ऊंच नींच और भेद भाव होता है। वहां भी आपको अपनी शारीरिक क्षमता और अपनी हैसियत के हिसाब से हीं भोजन या बाकि संसाधन मिलते हैं। यदि आप किसी दूसरे व्यक्ति के संसाधनों पर कब्ज़ा करें तो आपको उसकी कीमत भी चुकानी पड़ सकती है। यदि सामने वाला व्यक्ति आपसे ज्यादा ताक़तवर है तो वो आपको आसानी से अपने संसाधनों पर हाथ साफ़ नहीं करने देगा।

Calhoun देखना चाहते थे की यदि चूहों को एक ऐसे घर में रखा जाये जहाँ उन्हें हर तरह की सुविधा दी जाए तो चूहे आपस में मिल जुल कर रहते हैं या यहाँ भी हैसियत और संसाधनों के लिए लड़ाई करते हैं। 

क्या था Calhoun का Rat Utopia 

Rat Utopia शब्द का हिंदी अनुवाद करें तो आप उसे चूहों का स्वर्ग भी कह सकते हैं। Calhoun चूहों को जिस जगह रखना चाहते थे वे उसे इसी नाम से बुलाते थे। उन्होंने ने एक 1000 Square meter लम्बे चौड़े कमरे को एक ऐसे घर में तब्दील किया जहाँ चूहे आराम  से रह सकते थे। यह लगभग 100 फ़ीट लम्बा और 100 फ़ीट चौड़ा कमरा था। 

चूहों के बैठने के लिए और रहने के लिए कमरे के दीवारों में छोटे छोटे घर भी बने थे और उन घरों तक जाने के लिए सीढ़ियां भी लगीं थीं। 

अपने Rat Utopia के कमरे का निरिक्षण कर रहे Calhoun

कमरे के बीचों बीच एक फीडर था जिसमे तरह तरह के अनाज रखे गए थे जिसे चूहे जितना चाहें खा सकते थे और उसमे अनाज ख़तम होने पर उसे तुरंत भर दिया जाता था। पीने के लिए साफ़ पानी भी उपलब्ध था। चूहों का सेक्स रेशिओ भी बराबर रखा गया था यानि नर और मादा चूहों की संख्या लगभग एक सामान थी। 

इस Rat Utopia यानि कमरे का तापमान हर मौसम में एक सामान रखा जाता था। इस बात का भी ध्यान रखा गया था की चूहों को बाकि जानवरों से और हर तरह की बिमारियों से भी कोई खतरा न हो।

Calhoun का Rat Utopia यानि स्वर्ग तैय्यार हो गया था अब उन्हें बस बाहर बैठकर पूरे घर पर निगरानी रखनी थी और यह देखना था की चूहे इस स्वर्ग में रहकर किस प्रकार का समाज तैयार करते हैं। क्या वे एक दूसरे के साथ मिल जुल कर रहते हैं या उनके बीच रहने की जगह को लेकर, साथी चुनने को लेकर और भोजन को लेकर कोई लड़ाई भी होती है।

Calhoun ने अपने एक्सपेरिमेंट की शुरुआत लगभग 5000  चूहों से की थी और इसके अंत में वह देखना चाहते थे की चूहों की जनसँख्या बढ़ती है या घटती है। यदि वो बढ़ती है तो वह कितनी बढ़ सकती है क्योंकि इस Rat Utopia में चूहों को खाने के लिए कोई कमी नहीं थी। न हीं उन्हें किसी बीमारी या किसी अन्य जानवर से जान जाने का खतरा था। 

लेकिन चूहों के पास एक हीं संसाधन की कमी थी और वह थी रहने के लिए जगह। भले हीं वह जगह किसी स्वर्ग से कम नहीं थी पर यदि चूहों की जनसँख्या जरूरत से ज्यादा बढ़ती तो उनको बाकि चूहों की भीड़ में अपना जीवन व्यतीत करना पड़ता।

Calhoun का मानना था की मनुष्यों का वर्तमान समाज भी कुछ इन चूहों की तरह हीं था। मनुष्यों का समाज भी कुछ ऐसा हीं था जहाँ जरूरी संसाधनों जैसे भोजन की कमी नहीं थी और न हीं इंसानो की जनसंख्या को बढ़ने से रोकने के लिए कोई उपाय मौजूद था। Calhoun ने यह एक्सपेरिमेंट 1958 से 1965 के बीच किया था तब पूरे दुनिया की जनसँख्या लगभग 3 billion के आस पास थी। उस समय ज़्यादातर  वैज्ञानिक और विशेषज्ञ इंसानो की बढ़ती आबादी को लेकर काफी चिंतित थे। 

Calhoun का कहना था की हमारी दुनिया भी इस Rat Utopia की तरह है जहाँ इंसानो को बढ़ने से रोकने के लिए न तो किसी जीव या जानवर का खतरा है और न हीं इंसान खुद अपनी जनसँख्या को  बढ़ने से रोकने के लिए कोई उपाय करना चाहते हैं।  इंसानो को इस दुनिया के सीमित संसाधनों का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल करने से रोकने वाला भी कोई नहीं है।

अब ऐसे में यदि इंसानो की संख्या इतनी बढ़ जाए की उनके लिए यह धरती भी छोटी पड़ने लगे तो फिर क्या होगा।  Calhoun को लगता था की इस Rat Utopia एक्सपेरिमेंट से उन्हें अपने सारे सवालों का तो नहीं पर कुछ प्रमुख सवालों का जवाब जरूर मिलेगा। 

क्या नतीजा निकला इस एक्सपेरिमेंट का ?

Calhoun ने अपने इस एक्सपेरिमेंट को कई बार दोहराया और उसके रिजल्ट्स को नोट करते रहे। उन्होंने चूहों के व्यवहार और उनके आपस के बीच के संबंधों और वर्ताव पर भी नज़र रखी। Calhoun अपने इस एक्सपेरिमेंट को सालों लगातार चलने देते थे और अपने इस एक्सपेरिमेंट के अंत में चूहों की जनसंख्यां को भी नोट करते रहते थे। 

जब उन्होंने ने अपने इस रिसर्च और एक्सपेरिमेंट के रिजल्ट पब्लिश किये तो कई वैज्ञानिक और आम लोग हैरान रह गए। कई वैज्ञानिकों ने इस रिजल्ट को काफी चौंकाने वाला भी कहा था। असल में इस एक्सपेरिमेंट का रिजल्ट कुछ ऐसा निकला था जिसकी उम्मीद स्वयं Calhoun को भी नहीं थी। 

Calhoun ने जब अपने पहले एक्सपेरिमेंट के रिजल्ट को देखा था तब उन्हें उसके नतीजे काफी चौंकाने वाले लगे थे। उसके बाद उन्होंने उस एक्सपेरिमेंट को कई बार दोहराया और अलग अलग प्रजाति के चूहों पर भी इस एक्सपेरिमेंट को दोहराया पर हरेक में उन्हें एक हीं तरह के नतीजे देखने को मिले। 

असल में हुआ यह की जब Calhoun अपने एक्सपेरिमेंट को शुरू करते थे तो चूहों की आबादी धीरे धीरे बढ़नी शुरू होती थी। क्योंकि चूहों को खाने के लिए और रहने के लिए जगह की कमी नहीं थी उनकी आबादी का बढ़ना स्वाभाविक था। लेकिन आबादी जब एक स्तर पर पहुँच जाती तो चूहों के व्यवहार में कुछ अजीबो ग़रीब परिवर्तन देखने को मिल रहे थे। 

कुछ चूहे अब अपने व्यवहार में आक्रामक होने लगे थे। वे यूटोपिया में मौजूद कुछ मादाओं पर अपना हक़ जताने लगे थे और बाकि चूहों को उनके घोंसलों के नज़दीक आने से रोकने लगे थे। ऐसा होने पर चूहों में काफी भयानक लड़ाई देखने को मिलती थी जो की चूहों के समाज में स्वाभाविक था। 

हारने वाले चूहे समाज से निष्काषित कर दिए जाते थे या वे स्वयं हीं एक कोने में जाकर अकेले रहने लगते थे। क्योंकि उनके पास खाने या पीने की कोई कमी नहीं थी वे अपनी जगह या घोंसले को छोड़कर कभी कभार हीं बाहर आते थे।

कुछ चूहे तो ऐसे भी थे जो अपने जीवन से इतने संतुष्ट हो गए की उन्होंने मादा चूहों में रूचि लेना भी बंद कर दिया था। वे एक कोने में पड़े लड़ाई से बचते रहते थे। वे उन चूहों से लड़ना पसंद नहीं करते थे जो मादा चूहों पर अपना हक़ जताते थे। ऐसे चूहों के शरीर पर लड़ाई के या चोट के कोई निशान दिखाई नहीं देते थे। वे बस अपना पेट भरने में रूचि लेते थे और मादा चूहों से उनका कोई लेना देना नहीं था। Calhoun ऐसे चूहों को “The Beautiful Ones” यानि सुन्दर चूहे बुलाने लगे थे क्योंकि वो अपना ज्यादातर समय खुद के बालों को संवारते और अपने शरीर को चाट कर साफ़ करते हुए बिताते थे।

बाकि आक्रामक चूहे अपनी जरूरत और क्षमता से ज्यादा, मादा चूहों पर अपना कब्ज़ा बना कर रखते थे और उनको अपने जैसे दूसरे आक्रामक चूहों का भी सामना करना पड़ता था। ऐसा कुछ महीनो लगातार चलने के बाद ये चूहे भी आपस में लड़कर थक जाते थे और मादा चूहों के घोंसलों और बच्चों की सुरक्षा करना छोड़ देते थे।

ऐसा होने पर चूहों की आबादी में भारी गिरावट देखने को मिलती थी। ज्यादातर चूहे या तो मादा चूहों से दूर रहते या दूसरे नर चूहों से लड़ने से बचने के लिए मादा चूहों से दूरी बना कर रखते थे। जब चूहों की जनसंख्यां में गिरावट आती तो मादा चूहों में भी अजीब बदलाव देखने को मिलते थे। 

उनमे मातृत्व का भाव धीरे धीरे कम हो रहा था और कई मादा चूहे अपने बच्चों पर ध्यान भी नहीं दे रहे थे जिसकी वजह से शिशु चूहों की तुरंत मृत्यु हो जाती थी। Calhoun के पहले एक्सपेरिमेंट में चूहों की संख्या शुरू में 5000 से बढ़कर लगभग दोगुनी हुई थी लेकिन उसके बाद उस में इतनी भरी गिरावट आई की Calhoun आश्चर्यचकित रह गए। कमरे में खाना पानी होने के वावजूद चूहे अपनी आबादी नहीं बढ़ा रहे थे और दो साल तक एक्सपेरिमेंट के चलने के बाद एक कमरे में केवल 150 चूहे रह गए थे। ये आखरी चूहे भी अपनी आबादी नहीं बढ़ा रहे थे और अंत में उनकी भी मृत्यु हो गयी थी। 

Calhoun के इस एक्सपेरिमेंट का ऐसा भयावह अंत देख कर कई वैज्ञानिकों के रोंगटे खड़े हो चुके थे। कई इस एक्सपेरिमेंट के नतीजों को देखकर चूहों के समाज को इंसानो के समाज से जोड़ कर देखने लगे। उनका कहना था की, क्या हमारे जरूरत से ज्यादा भीड़ वाले इंसानो के शहर कहीं इन Rat Utopia की तरह तो नहीं हैं।

इंसानो की बढ़ती आबादी और जगह की कमी का हमारे समाज पर कोई नकारात्मक प्रभाव तो नहीं पड़ रहा है और कहीं भविष्य में चलकर हमें इसकी कोई भारी कीमत न चुकानी पड़े। हमारा आज का समाज भी कुछ ऐसा हीं है जहाँ शहरों में इंसानो का जमाव बाकि इलाकों से कहीं ज्यादा होता है। अब इसका प्रभाव हमारे समूचे समाज पर कैसे पड़ रहा है इस बात की चिंता शायद हीं किसी को है।