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यात्री विमानों को सफ़ेद पेंट हीं क्यों किया जाता है, जानते हैं आप

Qantas Airlines plane flying in the Sky.

यदि आप ने आज से पहले ये प्रश्न नहीं भी पूछा होगा तो भी जाने अनजाने में इस तथ्य या फैक्ट पर जरूर विचार किया होगा। भारत हीं नहीं बल्कि पुरे विश्व के ज्यादातर एयरलाइन्स द्वारा ऑपरेट किये जाने वाले हवाई जहाज़ आपको सफ़ेद रंग के पेंट में हीं रंगे दिखेंगे। लेकिन क्या कभी आपने ये सोचा है की ऐसा क्यों होता है। क्या यह केवल एक संयोग है या इसके पीछे कोई मंशा या कारण भी छिपा होता है।

यदि आप थोड़ा बहोत अपना दिमाग़ लगाएं तो इस सवाल का जवाब आप स्वयं हीं दे सकते हैं। जैसा की आप जानते हीं होंगे के गर्मियों के दिनों में अधिकतर लोग हल्के रंगो के कपड़े पहनना पसंद करते हैं। यदि आप धूप में बाहर निकले हैं तो ऐसा करना और भी जरूरी हो जाता है क्योंकि हल्के रंग के कपड़े सूर्य की रौशनी को ज्यादा बेहतर तरीके से परावर्तित यानि रिफ्लेक्ट करते हैं और आपके शरीर का तापमान ज्यादा नहीं बढ़ता है। विमानों को भी इसी समस्या से निपटना पड़ता है।

लेकिन क्या इसके अलावा भी कोई कारण होतें हैं जिन्हें विमानों को रंगते समय, एयरलाइन्स कम्पनियाँ ध्यान में रखती हैं। क्या सभी एयरलाइन्स अपने विमानों को सफ़ेद रंग से हीं रंगती हैं। और एक एयरलाइन्स अपने एयरक्राफ्ट का रंग या पेंट सेलेक्ट करते वक़्त किन किन बातों का ध्यान रखती है। चलिए हम इन प्रश्नों का उत्तर आपको विस्तार से देते हैं।

सफ़ेद रंग विमान को ठंडा रखता है

जैसा हमने पहले बताया की सफ़ेद रंग रौशनी को बेहतर रिफ्लेक्ट करता है। गहरा रंग जैसे काला रंग रौशनी के सभी वेवलेंथ्स को सबसे बेहतर अब्सॉर्ब करता है और बहोत जल्द गरम हो जाता है। अधिकतर एयरलाइन्स इसी समस्या को ध्यान में रखकर हीं अपने जहाज़ों का रंग सफ़ेद रखते हैं। सफ़ेद रंग का पेंट अन्य रंगो के तुलना में सूरज की रौशनी में मौजूद ज्यादातर हाई एनर्जी लाइट वेवलेंथ्स को रिफ्लेक्ट कर देता है।

एक यात्री विमान को धरती पर अपना ज्यादातर समय एयरपोर्ट के रनवे पर ही बिताना होता है। खुले आकाश के नीचे रनवे के साथ साथ एक विमान को भी धूप की मार झेलनी पड़ती है और दोनों के सरफेस तापमान का बढ़ना स्वाभाविक होता है। गर्मियों के दिनों में और गरम मौसम वाले देशों में यह समस्या और जटिल हो जाती है। ऐसे में एक विमान को सफ़ेद पेंट करने से उसके अंदर का तापमान सामान्य रहता है और यात्रियों के बैठने अनुकूल बना रहता है।

सफ़ेद रंग धरती पर तो विमान को ठंडा रखता हीं है लेकिन जब विमान आकाश में उड़ रहा होता है तब भी सोलर रेडिएशन से होने वाली सरफेस हीटिंग को काफ़ी कम कर देता है। एयरबस और बोइंग द्वारा बनाये जाने वाले यात्री विमानों में अब यह समस्या नहीं होती क्योंकि ये अपना अधिकतर उड़ान समय 30000 फुट से ऊपर बिताते हैं जहाँ बाहर का तापमान -50°C से लेकर -40°C डिग्री सेल्सियस के बीच बना रहता है। इसलिए इन विमानों का सरफेस टेम्परेचर -20°C के आस पास बना रहता है और विमान केबिन के अंदर के तापमान को सामान्य बनाने के लिए हीटिंग सिस्टम का भी प्रयोग करना पड़ता है।

लेकिन कुछ हाई स्पीड सुपरसौनिक यात्री विमान, जैसे कॉनकॉर्ड, जिस रफ़्तार पर उड़ते थे उस से उनके बाहरी सतह का तापमान 120°C तक भी पहुँच जाता था। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि सुपरसोनिक स्पीड पर वातावरण में मौजूद हवा के मोलेक्युल्स एयरक्राफ्ट की बॉडी के साथ घर्सण यानि फ्रिक्शन उत्पन्न करते हैं।

एयर फ्रांस द्वारा ऑपरेट किया जाने वाला कॉनकॉर्ड विमान, जिसे अब रिटायर कर दिया गया है। कॉनकॉर्ड विमान अपनी आवाज़ की रफ़्तार से भी तेज़ सुपरसोनिक स्पीड के लिए जाने जाते थे। लेकिन तेज़ आवाज़, हीटिंग इश्यूज और हाई ऑपरेशनल और मेंटेनेंस खर्च के कारन इनका इस्तेमाल अब बंद कर दिया गया है।

ऐसे सुपरसोनिक स्पीड पर उड़ने वाले विमानों में सफ़ेद पेंट तापमान में थोड़ी बहोत गिरावट लाता है। लेकिन इन सुपरसोनिक यात्री विमानों की ऐसी ही खामियों के कारण कॉनकॉर्ड को 2003 में रिटायर कर दिया गया था। अब ये कॉनकॉर्ड विमान आपको म्यूजियम या स्मारकों पर हीं देखने मिलेंगे।

सफ़ेद रंग जल्दी ख़राब यानि फ़ीका नहीं होता

जैसा हमने आपको ऊपर बताया की सफ़ेद रंग प्रकाश के विज़िबल स्पेक्ट्रम के अधिकतर वेवलेंथ्स को रिफ्लेक्ट कर देता है। इसके साथ साथ सफ़ेद रंग अल्ट्रा वायलेट किरणों को भी रिफ्लेक्ट करता है। अल्ट्रा वायलेट प्रकाश से रंगो में मौजूद पिगमेंट्स का सबसे अधिक क्षय होता है। ब्लू, ग्रीन, लाल और काले रंग के सतह अल्ट्रा वायलेट यानि यूवी रेडिएशन को सफ़ेद रंग से बेहतर सोखते हैं और जल्दी फ़ीके भी हो जाते हैं।

सफ़ेद रंग पर यूवी रेडिशन का प्रभाव अन्य रंगो की तुलना में धीरे धीरे होता है। इस से एयरक्राफ्ट का पेंट ज्यादा साल तक चलता है और उसे बार बार पेंट करने की जरूरत नहीं होती है। एक एयरबस A320 विमान को पेंट करने का खर्च लगभग $200,000 से $300,000 यानि 2 से 3 लाख अमेरिकी डॉलर जितना हो सकता है। भारतीय करेंसी में कन्वर्ट करें तो लगभग डेढ़ से तीन करोड़ रुपये का खर्च हो सकता है। इसलिए ज्यादातर एयरलाइन्स अपने विमानों पर होने वाले इस खर्च को कम से कम रखना चाहती हैं।

बर्ड-स्ट्राइक यानि पक्षियों के टकराने की सम्भावना कम होती है

बर्ड-स्ट्राइक तब होता है जब एक पक्षी या पक्षियों का समूह एक एयरक्राफ्ट से टकरा जाता है। यदि एक पक्षी किसी यात्री विमान के इंजन में चला जाये तो उसके फैन ब्लेड्स को क्षति पहुंचा सकता है या उसे ख़राब या बंद भी कर सकता है। ऐसा होने की सम्भावना इसलिए भी बढ़ जाती है क्योंकि एयरक्राफ्ट्स के जेट इंजन बहोत तेज़ रफ़्तार से अपने अंदर हवा को खींचते हैं।

क्योंकि ज्यादातर पक्षी धरती के करीब ही उड़ते हैं, इसलिए एक एयरक्राफ्ट के टेक ऑफ और लैंडिंग के समय ऐसा होने की सम्भावना ज्यादा होती है। ऐसा होने पर एक एयरक्राफ्ट को इंस्पेक्शन या रिपेयर के लिए इमरजेंसी लैंडिंग करनी पड़ती है और एक एयरलाइन्स का समय और पैसा दोनों बर्बाद होते हैं।

रिसर्च ये कहती है की पक्षियों का समूह जब ऊपर से नीचे की ओर देखता है तो उन्हें धरती या एयरपोर्ट के डार्क बैकग्राउंड पर जहाज़ का सफ़ेद रंग ज्यादा साफ़ नज़र आता है। इस से उन्हें टेकऑफ करते हुए यात्री विमान से दूरी बनाये रखने में आसानी होती है।

सफ़ेद रंग विमान के मेंटेनन्स को सरल बनाता है

जैसा की आप भी जानते हैं की सफ़ेद रंग में दाग-धब्बे ज्यादा आसानी से दिखाई दे जाते हैं। लेकिन एयरक्राफ्ट्स के सन्दर्भ में देखें तो इस से एयरक्राफ्ट्स के मेंटेनन्स में सहायता मिलती है। यदि एयरक्राफ्ट में कोई क्षति या डेंट आ जाये तो वो सफ़ेद रंग पर आसानी से नज़र आ जाती है।

सफ़ेद रंग पर एयरक्राफ्ट के फ्यूजेलाज़ यानि फ्यूल टैंक या इंजन से से होने वाले किसी ऑयल लीकेज का भी पता आसानी से चल जाता है। एक प्लेन के पंखों में भी कुछ छोटे फ्यूल टैंक्स लगे होते हैं, इनमें यदि कोई लीकेज या क्षति हो जाए तो उसे देखना आसान होता है। इसके साथ साथ सफ़ेद रंग पर एयरक्राफ्ट्स के रिवेट्स यानि जोड़ने वाले नट-बोल्ट्स भी साफ़ नज़र आ जाते हैं। यदि इन रिवेट्स में कोई डैमेज या क्षति है तो वो भी साफ़ दिखाई दे जायेगी।

एक विमान के इंजन को ढकने वाले मेटल शीट्स को जोड़ने के लिए मेटल रिवेट्स का प्रयोग किया जाता है। ऐसे रिवेट्स पुरे विमान में लगे होते हैं और मेटल और कम्पोजिट मटेरियल के शीट्स को आपस में जोड़े रखते हैं।

इसके अलावा एक एयरक्राफ्ट् के पंखों में मौजूद रडर, फ्लैप और एलीवेटर को ऊपर नीचे करने के लिए हाइड्रोलिक्स सिस्टम का प्रयोग किया जाता है। यदि इसमें से हाइड्रोलिक ऑयल लीकेज हो जाए तो उसे देखना आसान होता है।

सर्च और रेस्क्यू ऑपरेशन में इस से मदद मिलती है

विमान यदि दुर्घटना ग्रस्त हो जाए तो उसके किसी सुनसान या वीरान इलाके में गिरने की सम्भावना ज्यादा होती है। लम्बी दूरी की उड़ान वाले फ्लाइट्स को अपना ज्यादातर उड़ान समय समुद्र के ऊपर बिताना होता है। ऐसे में यदि कोई विमान किसी दुर्घटना का शिकार होता है तो उसके मल्बे को ढूंढ़ने में सफ़ेद रंग से मदद मिलती है। 

सफ़ेद रंग के विमान या उसके मल्बे को समुद्र के गहरे बैकग्राउंड पर ढूंढ़ना आसान होता है। इसके अलावा यदि एक विमान किसी घने जंगल में दुर्घटना ग्रस्त हुआ है तो भी विमान को ढूंढने में मदद मिलती है।

विमानों को बेचने में आसानी होती है 

यात्री विमानों को खरीदने के लिए एक एयरलाइन्स को काफी मोटा खर्च करना पड़ता है। एक एयरबस A320 विमान की बात करें तो वर्तमान में उसकी औसत कीमत 800 से 1200 करोड़ भारतीय रुपये के बीच हो सकती है। ऐसे में कई एयरलाइन्स इन विमानों को लीज या किराये पर भी खरीदते हैं और कुछ महीने या साल इस्तेमाल करने के बाद उसके असली ओनर एयरलाइन्स को लौटा देते हैं। 

लेकिन ऐसा करना आसान नहीं होता। आपको एयरक्राफ्ट्स के बाहरी आवरण को भी बदलना होता है। ऐसे में यदि एक विमान सफ़ेद रंग में रंगा हो तो उसमें ज्यादा बदलाव करने की आवश्यकता नहीं होती। अधिकतर एयरलाइन्स अपने एयरलाइन्स का लोगो अपने विमानों के एमपेनाज़ यानि वर्टीकल स्टेबलाइजर पर ही लगाते हैं। ऐसे में यदि विमान का रंग सफ़ेद हो तो केवल जरूरी हिस्सों पर ही पेंट लगाने की आवश्यकता पड़ती है।

इन्हीं विशेषताओं के कारन सफ़ेद रंग लगभग हर एयरलाइन्स द्वारा प्रेफर किया जाता है, लेकिन सफ़ेद रंग की कुछ कमियां या खामियां भी हो सकती हैं। और कुछ एयरलाइन्स ऐसी भी हैं जो सफ़ेद रंग के फायदों को नज़रअंदाज़ करके तड़कीले रंगो का भी इस्तेमाल करती हैं। आइये नीचे हम इन्हीं खामियों को विस्तार से समझते हैं।

सफ़ेद रंग अन्य रंगो की तुलना में ज्यादा महंगा और भारी हो सकता है

सफ़ेद रंग की तुलना में काला या लाल रंग काफी हल्का हो सकता है। सफ़ेद रंग में इस्तेमाल होने वाले मेटल ऑक्साईड इसके वजन और कीमत दोनों में बढ़ोतरी कर देते हैं। यही कारण है की विमानन के शुरुआती दिनों में एयरक्राफ्ट्स को पेंट करने की जगह पौलिश किया जाता था। लेकिन इस पौलिश के बाद भी ये विमान मौसम की मार नहीं सह पाते थे और जंग की समस्या खड़ी हो जाती थी। यही कारण है की अधिकतर एयरलाइन्स अपने एयरक्राफ्ट्स पर पेंट की परत लगाने लगीं।

लम्बी यात्रा के लिए विमानों का चलन बढ़ने से पहले अधिकतर विमानों को पेंट नहीं किया जाता था। इसकी जगह मेटल को पौलिश लगाकर चिकना बनाया जाता था। पेंट एक विमान को भारी कर सकता था जिस से उसके इंजन पर अधिक जोर पड़ता था। वर्तमान में ज्यादा पॉवरफुल जेट इंजिन्स के विकास के कारण अब विमानों को इस समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है।

पेंट करने से एक विमान का वजन भी बढ़ जाता है सफ़ेद रंग के भारी होने से इस समस्या में और इज़ाफ़ा हो जाता है। आपको बता दें की एक समुचे एयरबस A320 विमान को पेंट करने में 500 लीटर तक पेंट की खपत हो सकती है। यह वजन लगभग 8 व्यस्क व्यक्तियों के कुल भार के बराबर होता है। इस अतिरिक्त भार को लेकर उड़ने से एक विमान को अपना फ्यूल भी ज्यादा जलाना पड़ता है। लेकिन पेंट से होने वाले फायदों को देखें तो ये खर्च ज्यादा नहीं होता।

सफ़ेद विमान बर्फीले इलाकों में दिखाई नहीं देता

वैसे तो सफ़ेद रंग का दुर्घटना ग्रस्त विमान समुद्री या जंगली इलाको में बेहतर दिखाई देता है लेकिन यदि कोई विमान किसी बर्फीले इलाक़े या पहाड़ों में दुर्घटना ग्रस्त हो जाए तो उसे ढूंढ़ना आसान नहीं होता।

यूरोपियन ऐल्प्स माउंटेन रेंज में कई विमान दुर्घटना ग्रस्त हुए थे जिन्हे ढूंढ़ने में कई बार महीनो का समय भी लगा था। ऐसे कई हादसे हैं जहाँ बर्फ़ में सफ़ेद जहाज़ को पहचान पाना मुश्किल था।

सभी एयरलाइन्स सफ़ेद रंग का प्रयोग नहीं करती हैं

दुनिया की लगभग हर बड़ी एयरलाइन्स सफ़ेद रंग के एयरक्राफ्ट्स का हीं प्रयोग करती हैं। लेकिन कुछ एयरलाइन्स अलग रंगों जैसे लाल या ब्लू रंग का भी इस्तेमाल करती हैं। सफ़ेद रंगो के विमानों के बीच अलग दिखने की चाहत कहें या ज्यादा फ्लायर्स को अपनी ओर खींचने का प्रयत्न, अधिकतर एयरलाइन्स ऐसा करने के लिए कोई ख़ास वज़ह नहीं देती हैं।

मलेशिया की एयर एशिया एयरलाइन्स अपने विमानों में सफ़ेद के बजाये लाल रंग का प्रयोग करती है।

वहीँ एक एयरलाइन्स ऐसा भी है जिसने एक ऐसे रंग को चुना है जिसे शायद इस्तेमाल करने वाला वो संसार का अकेला एयरलाइन्स होगा। हम बात कर रहें हैं न्यू ज़ीलैण्ड एयर लाइन्स की जो अपने विमानों को काले रंग में रंगना पसंद करती है। काला रंग न्यू ज़ीलैण्ड का सेमि-ऑफिसियल रंग है। इस बात का अंदाज़ा आप इस तथ्य से लगा लीजिये की न्यू -ज़ीलैण्ड की क्रिकेट टीम की जर्सी का रंग भी काला है।

यह काला रंग न्यू ज़ीलैण्ड में मिलने वाले पक्षी, कीवी के रंग से लिया गया है। यही कारण है की उनके क्रिकेटर्स को भी कीवी बुलाया जाता है।